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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 16 :
उत्तरा फाल्गुनी के आसपास
- कुबेरनाथ राय
(व्याख्या भाग)

1. वर्षा ऋतु का ................... जरा का अनुभव।

शब्दार्थ - उत्तरा फाल्गुनी = सत्ताईस नक्षत्रों में से एक; चन्द्रमा के पथ पर पड़ने वाला बारहवाँ नक्षत्र। गदह-पचीसी = ऊल-जलूल काम करने की अवस्था जो 16 से 25 वर्ष तक मानी गई है। अशनि-संकेत = आकाश में बिजली चमकना। सिसृक्षा = सृष्टि या रचना करने की इच्छा। कृतार्थ = सन्तुष्ट या प्रसन्न। जरा और जीर्णता = बुढ़ापा और कमजोरी। आगमनी = आने का। काल-तुरंग = समय रूपी घोड़ा। पग-निक्षेप = पैर रखते ही। षट्उर्मियाँ= भूख, प्यास, ठण्डा, गरम, शोक, मोह की छः अवस्था। रिपुओं= शत्रुओं। साँठ-गाँठ = मेल-मिलाप, गुप्त साजिश। जरा = बुढ़ापा

सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण प्रसिद्ध निबन्धकार कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस - पास' निबन्ध से उद्धृत है।

प्रसंग - यहाँ लेखक ने नक्षत्रों और जीवन के चक्र के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए जीवन-सत्य का उद्घाटन किया है।

व्याख्या - लेखक कहता है कि उत्तरा फाल्गुनी नामक नक्षत्र वर्षा ऋतु का अन्तिम नक्षत्र है। जैसे-जैसे यह समाप्त होता है, जीवन में सावन जैसे मनोहारी दिनों का साथ छूटने लगता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार सावन का महीना प्रेम, आमोद-प्रमोद और जीवन की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। वर्षा के कारण बाह्य कार्य कम हो जाते हैं और पुरुष अपना समय घर पर व्यतीत करते हैं, त्यौहार होते हैं। जब तक सावन का यह नक्षत्र हमारे जीवन में रहता है, तब तक जीवन में गदह-पचीसी करने का अवसर मिल जाता है। अपने मन की हरकतें करने में बड़ा आनन्द होता है। लेकिन सत्ताइसवें नक्षत्र अथवा जीवन के सत्ताइसवें वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते भाद्रपद के घनघोर बादलों के बीच चमक बिजली के समान जीवन में भी विद्युत प्रवाह दौड़ने लगता है। अर्थात् हमारे ऊपर जिम्मेदारियों का भार पड़ने की सम्भावनाएँ बनने लगती हैं। तीस वर्षों तक हम जीवन के सुख भोगते हैं। इसी काल में सब अपने-अपने स्वभाव और रुचि के अनुसार सृजन के नए-नए इतिहास रचते हैं। चालीसवें वर्ष अर्थात् चालीस वर्ष की उम्र तक आते-आते या उसके दो-चार साल बाद समय रूपी अश्व हमें हिन-हिनाकर संकेत देता है कि अब हम बुढ़ापे और जर्जरता की ओर बढ़ने लगे हैं।

लेखक कहता है कि तीस से चालीस वर्ष की आयु में ही हम सृजन से जुड़ सकते हैं, सावधान रह सकते हैं, सतर्क, सचेत और कर्मशीलता का जीवन जीते हैं। चालीस से पैंतालीस वर्ष की आयु ही उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का समय होता है। इस कालावधि में प्रवेश करते ही शरीर की षट्उर्मियों में शिथिलता आने लगती है अर्थात् भूख, प्यास, मोह, ममता और काम से मन हटने लगता है। हम अस्ति (है) जायते ( जन्म लेना), वर्धते ( बढ़ना) के प्रति उदासीन होने लगते हैं और अपक्षय, परिणाम एवं विनाश की स्थिति बनी रहती है। उन्हें प्रदोष का सहयोग मिल जाता है। बाह्य रूप से वह शरीर के शत्रुओं से मिलकर योजनाएँ बनाती हैं। इसका फल यह होता है कि आपको पता चलता है कि अब बुढ़ापा आने वाला है।

विशेष -
1. यहाँ लेखक ने जीवन की वास्तविक चक्र को बताया है।
2. भाषा - तत्समपरक शुद्ध साहित्यिक भाषा।
3. शैली - वर्णनात्मक, प्रतीकात्मक, भावात्मक।

2. अतः आज .......................... देख रहा हूँ।

शब्दार्थ – पूर्वा फाल्गुनी = सत्ताइस नक्षत्रों में से ग्यारहवाँ नक्षत्र। पानपात्र = मदिरा का प्याला। खुराक = भोजन। नयन अंजन = आँख का काजल। काम भुजंग = कामदेव रूपी सर्प। क्रीड़ा सहचर = खेल का साथी। श्रेय प्रेय = श्रेष्ठ और प्रिय। जीर्णता= पुरानापन। जर्जरता = कमजोर, व्यर्थ। विक्षिप्तता = पागलपन। उपंग वाद्य= , बाँसुरी। काल-नट्टिन = काल रूपी नटनी। त्रिभंग = तीन बल पड़े हों ऐसी मुद्रा में खड़े होना। मार = कामदेव।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण में लेखक कुबेरनाथ राय ने उत्तरा फाल्गुनी लगने से पूर्व की स्थिति का वर्णन किया है।

व्याख्या - लेखक कहता है कि पूर्वा फाल्गुनी के अन्तिम चरण अर्थात् अड़तीसवें वर्ष तक पहुँच गया है। उसके रस का अन्तिम प्याला उसके होंठों पर लगा है। इस समय क्रोध मेरा भोजन है, लोभ मेरी आँखों का काजल है और कामरूपी सर्प मेरा सहयोगी है। लेखक इनको विद्रोह, प्रगति और नवलेखन का नाम देता है। काम, क्रोध और लोभ ये तीनों ही विकारों की श्रेणी में आते हैं, भले ही इसमें श्रेष्ठता और प्रिय का भाव न हो, गति-मुक्ति कुछ भी न हो लेकिन इसमें पुरानापन और जर्जरपन नहीं है। यह बुढ़ापे और बुढ़ापे की ओर बढ़ने का प्रतीक भी नहीं है, वरन् उत्तरा फाल्गुनी द्वारा प्रदान की गई विक्षिप्तता एक प्रकार से यौवन का नवीन अनुभव के समान है। लेखक को लग रहा है कि उसके अन्दर कोई बाँसुरी बजा रहा है। उसके सामने काल रूपी नटनी अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी अपने त्रिभंग रूप में सामने खड़ी है और लेखक उस मुद्रा में कामदेव की तीन कन्याओं तृषा, रति और आर्ति को एक साथ देख रहा है। ये तीनों जब साथ हो जाएँ तो मनुष्य का जीवन • परिवर्तित हो जाता है। ये तीनों विरोधाभासी कार्य करती है।

विशेष -
1. यहाँ लेखक ने पूर्वा फाल्गुनी के माध्यम से नवोदित और कथित वाद के साहित्यकारों पर व्यंग्य किया है।
2. जीवन चक्र की यथार्थ स्थिति का चित्रण है।
3. भाषा - तत्समपरक साहित्यिक खड़ी बोली।
4. शैली -व्यंग्यात्मक, विवेचनात्मक, विश्लेषणात्मक।

3. अतः मैं चेष्टा ................. भोग सकूँगा।

शब्दार्थ — चेष्टा = प्रयास, कोशिश। अचल = स्थिर। शरद = ठण्ड का मौसम। निदाघ = गर्मी, ताप। हू-हू = भयंकर आवाज।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - यहाँ लेखक कुबेरनाथ राय ने कहा है कि वह पूरी कोशिश करेंगे कि वह अपने जीवन से उत्तरा फाल्गुनी काल को स्थिर कर लें।

व्याख्या - लेखक कहता है कि मैं पूरी कोशिश करूँगा कि अपने अन्दर अमृता कला अर्थात् जीवन को सदा-सदा के लिए जीवन्त बनाए रखने की कला की खोज करके इस उत्तरा फाल्गुनी काल को बीस - बाइस के लिए अपने अन्तर में स्थिर और अचल बना लूँ। अपने आप को इतना दृढ़ बना लूँ कि बाहर शीत लहरें चलें या भीषण ताप से हू-हू की आवाजें आएँ, तब भी मैं अपने बालखिल्य साथियों के साथ व्यवस्था की इन पुतलियों के लयबद्ध नृत्य को भोग सकूँगा। भाव यह है कि लेखक अपने मन को इतना नियन्त्रित और मजबूत बना लेना चाहता है कि उस पर पीड़ा का कोई प्रभाव न हो और वह स्वयं में रत रहते हुए आनन्दपूर्वक रह सके। अपने अन्तर्मन के आनन्द के साथ सहचर्य कर सके।

विशेष -
1. यहाँ लेखक ने जीवन को आनन्दपूर्वक जीने का सन्देश दिया है।
2. उत्तरा फाल्गुनी को रोकने से तात्पर्य है कि लेखक चाहता है कि वह सदैव चालीस की उम्र जैसा ऊर्जावान, युवा और सक्रिय रहे, सृजन करता रहे। बाह्य ऋतु परिवर्तन का उस पर प्रभाव न पड़े।
3. भाषा — तत्समपरक साहित्यिक खड़ी बोली।
4. शैली- विचारात्मक।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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